आखिर क्या है GNCTD बिल, जिसको लेकर आमने-सामने हैं दिल्ली सरकार और केंद्र
हालही मे राज्य सभा ने GNCTD संशोधन विधेयक 2021 को मंजूरी दी है। यह जो बिल है, जो THE GOVERNMENT OF NATIONAL CAPITAL TERRITORY OF DELHI ACT, 1991 का ही संसोधित विधेयक है। GNCTD बिल को 15 मार्च को लोकसभा मै और 24 मार्च 2021 को राजयसभा मै पास किया गया है। लेकिन अब तक इसे लागू नहीं किया गया। अब तक दिल्ली मै GNCTD-2018 बिल लागु है।
चलिए जानते है की GNCTD बिल 2018 मै सुप्रीम कोर्ट ने क्या निर्णय लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने GNCTD बिल 2018 मैं कुछ इस प्रकार के निर्णय लिए थे।
सुप्रीम का पहला निर्णय यह था की, उपराज्यपाल, मंत्री परिषद् की सलाह पर ही काम करेंगे।
केवल दिल्ली की पुलिस , सावर्जनिक व्यवस्ता और भूमि सम्बंधित मामले उपराज्यपाल के अधिकार मे रखे जायेंगे। इसके साथ सुप्रीम कोर्ट नै ये भी कहा था की मंत्रीपरिषद के निर्णय के बारे मै उपराज्य पाल को सूचित करना आवश्यक होगा।
न्यायपाल ने यह भी स्पस्ट किया था,
की दिल्ली के
उपराज्यपाल की स्तिथि अन्य राज्य के राज्यपाल जैसी नहीं है बल्कि सीमित अर्थ मै वह केवल प्रसासक है
क्यों GNCTD बिल को लेकर इतना विवाद हो रहा है।
इस बिल का विरोध मुख्यतय दिल्ली की सरकार कर रही है। अरविंद केजरीवाल ने tweet करके इस बिल का विरोध किया। अरविंद केजरीवाल का कहना है, की केंद्र सरकार दिल्ली के नागरिको के मौलिक अधिकार का हनन कर रही है। पहले भी कई बार केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बिच निर्णय लेनी की ताकत को लेकर विवाद हुआ है।
GNCTD बिल - 2021 मै ऐसा क्या है, जिससे यह विवाद हुआ है।
इस बिल के आने से दिल्ली सरकार बिलकुल भी खुश नहीं है। क्योकि यह बिल दिल्ली की सरकार के निर्णय लेने की शक्ति को कम कर देगी। अरविन्द केजरीवाल का कहना है की अगर सरकार का मतलब एलजी है तो दिल्ली सरकार का क्या काम है। अगर राज्य सरकार को कुछ निर्णय लेना हो तो उन्हे एलजी की सालह लेनी पड़ेगी। जो की सीधे दिल्ली के नागरिको के मौलिक अधिकार का हनन है। क्योकि दिल्ली की जनता वोट डाल कर अपने मनपसंद वयक्ति को अपने राज्य और चैत्र के विकास के लिए चुनते है। ताकि चुना गया नेता समाज कल्याण के निर्णय खुद ले सके। लेकिन इस बिल के आने से जनता दवरा चुना गया नेता जनता कल्याण निर्णय खुद नहीं ले पाएगा बल्कि राज्य सरकार को किसी भी कानून को लाने के लिए सबसे पहले एलजी से राय लेनी पड़ेगी। जिसका मतलब सीधे तोर पर आम जनता के मौलिक अधिकार को छीनने की बात हो जाएगी।
GNCTD बिल के निर्णय क्या-२ है
इस बिल मै मजूद पहला निर्णय यह है की , विधानसभा के बनाई किसी भी कानून मै सरकार का मतलब LG यानि राज्यपाल होगा। यानि दिल्ली सरकार का मतलब एलजी होगा।
अब दिल्ली सरकार को कोई भी निर्णय लेने से पहले उपराज्यपाल की राय लेनी पड़ेगी। इनमे वे फैसले भी शामिल है, जो मंत्रीमंडल करेगा।
एलजी उन मामलो को खुद तय करेंगे जिनमे उनकी राय मांगी जानी चाहिए।
आखिर क्यों केंद्र सरकार को इस बिल को
लाने की आवयसकता पड़ी।
यह जानने के लिये हमे भारत का इतिहास जानना पड़ेगा। 1991 मै 69 वे संविधान संसोधन के तहत THE GOV. OF NATINAL CAPITAL TERRETORY OF DELHI BILL (GNCTD BILL 1991) लाया गया और दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी छेत्र घोषित किया गया।
इस एक्ट मै दिल्ली को विधानसभा के साथ-साथ केंद्र शाषित प्रदेश के रूप मै मान्यता दी गयी थी जिसके तहत संविधान मै अनुछेद 239 AA और 239 BB को शामिल किया गया था।
239 AA के अनुसार दिल्ली के उपराज्य पाल मंत्री परिषद् की सिफारिश पर काम करेगा। और इसी की धरा 4 मै उपराज्य पाल किसी भी निर्णय को राष्ट्रपति को परषित कर सकते है।
सही तौर पर ये अधिनियम दिल्ली विधानसभा की शक्तियों, उपराज्यपाल की शक्तियों और उपराज्य पाल को जानकारी देने से सम्बंधित मुख्य मंत्री के कर्तव्य को दर्शाता है।
ध्यान देने वाली बात यह की 1992 से लेकर 2014 तक केंद्र और दिल्ली मै एक ही पार्टी की सरकार थी। जब 2014 मै दिल्ली मै आम आदमी पार्टी की और केंद्र मै बीजेपी की सरकार बनी। जो की अलग पार्टी है। जिसके कारण केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच काफी मतभेद होते आये है। 2014 मै केंद्र पर मुकदमा लगाकर अरविन्द केजरीवाल नै अपना इस्तीफा भी दे दिया था। तब यह मामला उपराज्य पाल के तहत सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था।
तब सुप्रीम कोर्ट नै 2018 मै 5 अपने निर्णय बताए थे।
1) उपराज्यपाल, मंत्री परिषद् की सलाह पर ही काम करेगा। मतलब दिल्ली मै जो वास्तविक शक्तियों होगी वह मंत्री परिषद् के पास होगी। क्योकि मंत्री परिषद् को वहा की जनता को इलेक्ट करके भेजा है।
2) इसके आलावा दिल्ली की पुलिस, सार्वजनकि व्यवस्था और भूमि सम्बंधित मामले उपराज्यपाल के अधिकार मै रखे जायेंगे। और इसके आलावा जितने भी मामले है वे वहा की मंत्री परिषद् तय करेगी।
3) हालाँकि न्यायालय ने यह भी कहा था, की मंत्रीपरिषद् के निर्णय के बारे मै उपराज्यपाल को सूचित करना आवश्यक होगा। क्योकि यूनियन टेरिटरी मै उपराज्य पाल एक बहुत महत्वपूर्ण पद है।
4) न्यायालय नै यह स्पस्ट किया था,
की दिल्ली के
उपराज्य पाल की स्थिति अन्य राज्य के राज्यपाल जैसी नहीं है बल्कि सिमित अर्थ मै
वह केवल प्रसासक है।
न्यायालय के इस फैसले से साफ पता चलता है की सुप्रीम कोर्ट ने ज्यादातर सकती दिल्ली की सरकार को दी न की राज्यपाल को। इस फैसले के बाद सबको लगा की मामला सुलझ गया लेकिन इस फैसले बाद केजरीवाल सरकार नै अपने वर्चस्व की जीत मान लिया। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद दिल्ली सरकार ने किसी भी निर्णय को लागु करने से पहले, आधिकारिक मामलो की जो फाइल है उन्हे राज्यपाल को भेजना बंद कर दिया। निर्णय लागु कर देने के बाद दिल्ली सरकार उपराज्यपाल को बताती थी, की हमने यह रूल लागु कर दिया। चाहे वो ODD EVEN का कानून हो, बिजली माफ़ करने का कानून हो या पानी फ्री करने का या फिर महिलाओ के लिये बस टिकट फ्री करना हो। केजरीवाल सरकार ने किसी भी निर्णय को लागु करने से पहले राज्यपाल की राय लेना जरुरी नहीं समझा।
और इसी वजह से राज्यपाल के एक बहुत बड़े अधिकार का हनन हो रहा था। जिसे हमने अनुछेद 239 AA मै जाना था की राज्यपाल किसी भी सवैधानिक निर्णय को राष्ट्रपति को परिषद कर सकता है। लकिन निर्णय पहले ही लागु कर दिया हो तो उससे राष्ट्रपति को भेजना का कोई अर्थ नहीं बनता।
दोस्तों यही कारण है की केंद्र सरकार के द्वारा GNCTD BILL -2019 लाया गया।
इस बिल के आने से केंद्र सरकार की दिल्ली मै पकड़ मजबूत हो जाएगी कयोकि केंद्र और दिल्ली सरकार की पार्टी एक नहीं है।
वही केजरीवाल का कहना है की इस बिल के
आने से दिल्ली सरकार अपना काम सवतन्त्र हो कर नहीं कर पाएगी।
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WRITER:
ABHISHEK SHARMA
founder and author of royalsinfo.com
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